
भारत के बंटवारे का ज़िक्र अक्सर केवल हिंदू-मुस्लिम टकराव और मुस्लिम लीग की राजनीति तक सीमित कर दिया जाता है, जबकि यह तस्वीर अधूरी है। जब देश बंटवारे की ओर बढ़ रहा था, तब मुसलमानों का एक बड़ा हिस्सा ऐसा भी था जो पाकिस्तान के विचार का विरोध कर रहा था और मुस्लिम लीग की राजनीति व उसके दावों को खुलकर चुनौती दे रहा था।
इस विरोध की सबसे संगठित और मज़बूत आवाज़ थी मोमिन कॉन्फ्रेंस। यह वही आंदोलन था जिसने सबसे पहले और बुलंद स्वर में कहा कि मुसलमान कोई एकरूप समुदाय नहीं हैं, बल्कि उनके बीच भी जातीय भेदभाव मौजूद है। पाकिस्तान के समर्थन के माहौल में मोमिन कॉन्फ्रेंस ने साफ शब्दों में कहा — “मोमिन जिस ज़मीन पर रहते हैं, वही उनका पवित्र स्थान है, हमें किसी पाकिस्तान की ज़रूरत नहीं।”
मोमिन कॉन्फ्रेंस कोई छोटा संगठन नहीं था, बल्कि मेहनतकश, पेशेवर और वंचित मुस्लिम तबकों — यानी नीची मानी जाने वाली जातियों — से निकला एक मजबूत आंदोलन था। इसका उद्देश्य केवल राजनीति करना नहीं था, बल्कि अपने हक़, इज़्ज़त और देशप्रेम का इज़हार करना था।
भारतीय मुस्लिम समाज में सदियों से जातीय विभाजन रहा है। ऊंची जातियों (अशराफ) जैसे — सैयद, शेख, पठान, मुगल — खुद को उच्च वंश का मानते थे और शिक्षा, नौकरियों व सत्ता पर काबिज़ रहते थे। दूसरी ओर, जुलाहा, रायन, सलमानी, कसाई, दर्ज़ी, कुंजड़ा, मोची, नाई, लोहार जैसे पेशों से जुड़े तबकों को नीचा समझा जाता था।
मोमिन कॉन्फ्रेंस की अगुवाई भी इन्हीं वंचित वर्गों से आई। आसिम बिहारी, अब्दुल कय्यूम अंसारी जैसे नेता इसी पृष्ठभूमि से थे। सलमानी, धोबी, कसाई, मोची, रायन, रंगरेज़ जैसे समुदायों के लोग इसमें शामिल थे। कय्यूम अंसारी ने जब लीग का यह व्यंग्य सुना कि “अब जुलाहे भी विधायक बनेंगे?” तो उन्होंने लीग से नाता तोड़ दिया।
21 अप्रैल 1940 को पटना में हुई बैठक में पाकिस्तान के विचार को स्पष्ट रूप से खारिज किया गया और कहा गया कि मोमिन कॉन्फ्रेंस मुस्लिम लीग के साथ नहीं है। कय्यूम अंसारी ने यह भी कहा कि “हम गांधीवादी नहीं हैं, हमला हुआ तो जवाब देंगे।” आसिम बिहारी ने साफ किया कि मोमिनों को कोई धार्मिक, सांस्कृतिक या सामाजिक भय नहीं — उनकी ज़मीन ही उनका पाकिस्तान है।
27 अप्रैल 1940 को दिल्ली में हुई ‘आजाद मुस्लिम कॉन्फ्रेंस’ में मोमिन कॉन्फ्रेंस समेत कई संगठनों ने हिस्सा लिया। 40,000 बुनकरों के साथ यह आंदोलन मजबूत होकर उभरा, लेकिन कांग्रेस ने इनकी चेतावनी को अनदेखा किया और लीग से बातचीत में इन्हें शामिल नहीं किया — यही एक बड़ी चूक साबित हुई।
1926 में कोलकाता में मोमिन कॉन्फ्रेंस की नींव रखी गई। इससे पहले 1914 में फलाह-उल-मोमिनीन और 1923 में जमाअत-उल-मोमिनीन जैसी कोशिशें हो चुकी थीं। आसिम बिहारी ने वंचित मुसलमानों को संगठित कर उन्हें उनके अधिकार और पहचान का एहसास कराया, साथ ही यह सुनिश्चित किया कि यह संगठन किसी भी बड़ी पार्टी का सहारा न बने।
1937 के बाद जब मुस्लिम लीग ने पूरे मुस्लिम समाज की प्रतिनिधि होने का दावा करना शुरू किया, तब बिहार, यूपी, बंगाल और दिल्ली के कई इलाकों में मोमिन कॉन्फ्रेंस बेरोज़गारी, शिक्षा, पेशागत सुरक्षा और जातीय भेदभाव के खिलाफ काम कर रही थी। लीग जहां धार्मिक खतरे की बात करती थी, वहीं मोमिन कॉन्फ्रेंस कहती थी — “हमारी रोज़ी-रोटी खतरे में है, हमारी जातियों की इज़्ज़त नहीं, हमारे बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे।”
कांग्रेस के मुस्लिम जनसंपर्क अभियान में भी गाजीपुर, मिर्ज़ापुर और आसपास के अंसारी तबकों को मोमिन कॉन्फ्रेंस ने संगठित किया। नेहरू और डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी मानते थे कि लीग सभी मुसलमानों की आवाज़ नहीं है।
1936 से 1946 के बीच मोमिन कॉन्फ्रेंस ने मुस्लिम समाज में एक नई सोच पैदा की — धर्म से पहले जाति, रोजगार और सामाजिक न्याय की बात। इसने वंचित तबकों को पहचान, सम्मान और राजनीतिक जगह दी। 1946 के चुनाव में साबित हुआ कि सभी मुसलमान लीग के साथ नहीं थे।
उस दौर में मात्र 13% लोगों को वोट देने का अधिकार था और यह अधिकार केवल उन्हीं को था जो टैक्स देते थे। अगर सभी वंचित मुसलमानों को यह अधिकार मिला होता, तो शायद बंटवारा टल सकता था।
मोमिन कॉन्फ्रेंस ने ‘मुसलमान’ की परिभाषा को चुनौती दी और कहा कि इस्लाम के नाम पर जातिवादी सत्ता स्वीकार्य नहीं। पाकिस्तान की मांग असल में अशराफ तबकों की थी, जिन्हें डर था कि लोकतंत्र में उनके विशेषाधिकार खत्म हो जाएंगे।
इस आंदोलन के पास स्पष्ट राजनीतिक एजेंडा था — जातीय समानता, संसाधनों का न्यायपूर्ण बंटवारा और लोकतांत्रिक भागीदारी। उनका कहना था — “मज़हब हमारे लिए अहम है, मगर उससे ज्यादा अहम हमारी इज़्ज़त, हमारी रोज़ी और हमारा वतन है।”
अगर आज भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, तो उसमें मोमिन कॉन्फ्रेंस की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। दुर्भाग्य से राजनीति ने इस योगदान को भुला दिया, इसलिए आज इसे याद करना ज़रूरी है।