
पटना (पंच पथ न्यूज़)। बिहार के मोकामा सीट पर आगामी विधानसभा चुनाव से पहले एक अहम घटनाक्रम सामने आया है। सोमवार को केंद्रीय मंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) (JDU) के वरिष्ठ नेता ललन सिंह के खिलाफ चुनाव आचार संहिता (Model Code of Conduct) के कथित उल्लंघन के आरोप में FIR दर्ज की गई।
मामला मोकामा विधानसभा क्षेत्र का है, जहाँ ललन सिंह सक्रिय रूप से प्रचार में शामिल थे। एक वायरल वीडियो में ललन सिंह कथित रूप से अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से कह रहे हैं कि मतदान के दिन कुछ प्रतिद्वंदी नेताओं को घर से बाहर निकलने न दें, उन्हें “घर में बंद” रखें। केंद्रीय मंत्री ललन सिंह का यह भी कहना है कि (घर से उनको ही निकलने दें जो हमारे पक्ष में वोट करें)।
प्रशासन ने वीडियो फुटेज का विश्लेषण किया और उसके बाद पटना जिला प्रशासन ने संबंधित अधिकारियों की रिपोर्ट के आधार पर FIR दर्ज कराई। FIR में उल्लिखित धाराएँ भारतीय दंड संहिता और Representation of the People Act, 1951 की संबंधित धाराएँ बताई गई हैं।
विपक्षी दलों ने इस मामले को गंभीर माना है। राष्ट्रिय जनता दल (RJD) ने वीडियो सार्वजनिक कर कहा है कि यह घटना आयोग की स्वतंत्रता एवं लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करती है।
ललन सिंह की पार्टी ने इस बात को खारिज किया है कि वीडियो में छेड़छाड़ की गई है और गलत प्रस्तुति दी गई है। हालांकि, इसके पुष्ट प्रमाण अभी सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आए हैं।
इस गिरफ्तारी/प्राथमिकी ने चुनावी माहौल को और गर्मा दिया है, विशेषकर मोकामा में, और यह आगामी मतदान के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ बन सकती है। अब देखना होगा कि चुनाव आयोग इस मामले में क्या कार्रवाई करती है—क्या आयोग ललन सिंह को जवाब देने का समय देगा, या अन्य सख्त कदम उठाएगा।
साथ ही, यह मामला सुनिश्चित करेगा कि मतदान के दिन क्या सुरक्षा एवं निष्पक्षता के उपाय लागू हों। इस तरह की घटनाएं मतदाताओं के डराने-धमकाने या मतदान रोकने के प्रयास के रूप में देखी जा सकती हैं।
इसके अतिरिक्त, वीडियो के स्रोत, प्रमाणीकरण और स्वतंत्र जाँच-परख की संभावना बनी हुई है। दोष सिद्ध होने पर दल या प्रत्याशी को चुनाव आयोग द्वारा दंडात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
मोकामा में ललन सिंह के खिलाफ FIR दर्ज होना बिहार विधानसभा चुनाव के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण घटना है। यह दर्शाता है कि चुनाव के दौरान आचार संहिता के उल्लंघन की चिंताएँ कितनी गंभीर हो सकती हैं। अब सवाल यह है कि इस मामले का राजनीतिक और कानून-प्रक्रिया किस दिशा में जाएगी और इससे आगामी मतदान प्रक्रियाओं पर क्या असर होगा। चुनाव आयोग इसे कैसे संभाल पाएगा ?




