जेल के पीछे से रात के अंधेरे में पैदल चल कर पकड़ी थी काठगोदाम एक्सप्रेस

इमरजेंसी की यादें-3

  • सुहेल वहीद

डीएम आफिस के सामने का अनशन समाप्त करा दिया गया। इस उपलक्ष्य में उसी शाम को आवास विकास में कुछ कार्यकर्ताओं ने पार्टी रखी थी। प्रखर सोशलिस्ट संतोष मिश्रा जी को वहां बुलाया गया। रात करीब ग्यारह के बाद का समय था जब वह आवास विकास काॅलोनी से खा पीकर रिक्शे पर लौट रहे थे। बस अडडे का चैराहे के उस कोने पर जो पीएसी की तरफ का है, वहां पर एलआईयू का इंचार्ज खड़ा उनका इंतजार ही कर रहा था। उनको देखते ही जोर से चिल्लाने के स्टाइल में वह मिश्रा जी के रिक्शे के पास आया और कहा कि इमरजेंसी लग गई है, नेता बंद किए जा रहे हैं। उसने बताया कि संतोष मिश्रा समेत केजी त्रिवेदी, हरगोविंद वर्मा, गया प्रसाद मिश्र के वारंट बन गए हैं।

एलआईयू इंचार्ज की बात सुनकर संतोष मिश्रा भड़क से गए कि क्या अब इंदिरा हम लेगों को हमारे घर में भी नहीं रहने देगी। बहरहाल, संतोष मिश्रा सीधे चलते चले आए और ट्रांसपोर्ट चैराहे पर पहुंचे तो यहां पर कई और लोग भी मिले, सब परेशान थे कि इमरजेंसी लग गई है। हरगोविंद वर्मा भी परेशान नजर आए। उनके होली नगर वाले घर पहुंचे चुपके चुपके। लाइटें बंद करवा दी गईं। थोड़ी सी तैयारी की गई और वर्मा जी के घर के पीछे नाले के साथ साथ उस रास्ते से जो जेल के पीछे से होता हुआ आगे जाकर निकलता है, उससे पैदल आगे बढ़े। सारा किस्सा वहीं पर बयान किया गया कि अब क्या किया जाए। गिरफ्तार होना है तो सौ पचास लोगों के साथ गिरफ्तार हों।

हरगोविंद वर्मा और संतोष मिश्रा ने तय किया कि पहले यहां से निकलें। लखनऊ चलें और वहां पार्टी के लोगों से बात करके आगे की रणनीति तय की जाए। इसलिए यह दोनों सीतापुर जंक्शन पहुंचे और चार बजे सुबह वाली काठगोदाम एक्सप्रेस पकड़ कर करीब साढ़े पांच बजे ही लखनऊ पहुंच गए।

एपीसेन रोड पर चंद्रशेखर वाली प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का दफ्तर होता था तब और पान दरीबा में लीला निवास में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का कार्यालय था जिस पार्टी में राज नारायण थे जिनके मुकदमे में इंदिरा गांधी हार गई थीं और इसी कारण इमरजेंसी लगी थी। पान दरीबा वाले कार्यालय के बाहर एक दरोगा कुर्सी पर बैठा औंघा रहा था और पास में ही एक होमगार्ड भी सोया सा बैठा था।

हरगोविंद वर्मा ने उस दरोगा को अरदब में लेते हुए पूछा, ’आप यहां कैसे….कार्यालय के गेट पर कैसे…’ वह उठ खड़ा हुआ।, बोला डयूटी है। इस पर वर्मा जी ने जवाब में और कड़े ढंग से कहा, डयूटी है तो यहां क्यों ? तब तक संतोष मिश्रा जी ने दस रुपए का नोट निकाला और उस होमगार्ड को दिया कि जाओ चाय वाय लाओ…चाय पी कि नहीं और सुनो बन मक्खन भी लेते आना  (जारी)

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