
- मायावती की हुंकार, 3 घंटे बिताएंगी मंच पर, 2027 के लिए बड़े संकेत
- प्रदेश भर से इकट्ठा हो रहे हैं बसपाई, लाखों की जुटने की संभावना
रेहान अंसारी
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लखनऊ (पंच पथ न्यूज़)। बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की प्रमुख मायावती 9 अक्टूबर को लखनऊ में अपने संस्थापक मान्यवर कांशीराम की पुण्यतिथि पर एक भव्य रैली कार्यक्रम कर रही हैं। यह कार्यक्रम कांशीराम स्मारक इको गार्डन में आयोजित किया जा रहा है। पार्टी इसे मुख्यमंत्री चुनावी तैयारियों के मद्देनज़र अपना “शो-ऑफ-स्ट्रीथ” बताती है।
बीएसपी इसे कांशीराम को श्रद्धांजलि तथा पार्टी को पुनर्जीवित करने का प्रयास बता रही है 2027 के राज्य चुनावों से पहले संगठन को जोड़ने और सामाजिक-राजनीतिक संदेश देने का मंच बता रही है।
पार्टी ने इसे ‘महारैली’ और श्रद्धा-समर्पित कार्यक्रम के मिश्रण के रूप में पेश किया है। मंच-सज्जा और आयोजनों की तैयारियाँ तेज हैं। इस बार रैली में एक खास चीज़ चर्चा का विषय बनी हुई है। इस बार मंच पर सात कुर्सियों की व्यवस्था की चर्चा भी उठी है जो बीएसपी के लिए प्रतीकात्मक और असामान्य कदम माना जा रहा है। आम तौर पर ऐसा नहीं होता है लेकिन इस बार ऐसा दिखाई दे रहा है और इस बात की खासा चर्चा भी है। क्या कह रही है मायावती और बीएसपी ?
मायावती ने विरोधी दलों खासकर सपा और कांग्रेस पर आरोप लगाए हैं कि वे कांशीराम की पुण्यतिथि के मौके पर केवल ‘दिखावा’ कर रहे हैं और उनके अपमानजनक इतिहास और नीतियों के बावजूद अचानक स्मरण करके वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं। बीएसपी का कहना है कि कांशीराम की विरासत वे ही सच्चे अर्थों में संभालते आए हैं और रैली का उद्देश्य उसी विरासत को सम्मान देना है।
विश्लेषकों के मुताबिक यह रैली बीएसपी के लिए केवल श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले शक्ति प्रदर्शन और जातीय-सियासी गठजोड़ों की दिशा में सन्देश है। कुछ टिप्पणीकारों का मानना है कि मायावती के मजबूत मंच-उपस्थित होने से उत्तर प्रदेश की राजनीति दो-ध्रुवीय से त्रिक-ध्रुवीय फॉर्मेट की ओर जा सकती है यानी भाजपा और सपा-कांग्रेस के मुकाबले बीएसपी का प्रभाव भी निर्णायक साबित हो सकता है।
रैली की तैयारियाँ ज़मीनी स्तर पर तेज हैं पूरा शहर नीले कलर से पट गया है लखनऊ आने वाले रास्तों पर पोस्टरों और झण्डों की भरमार है मानो एक तरह से बसपा नई ऊर्जा के साथ उभर रही है। पोस्टर्स और बैनरों का प्रबंध, कार्यकर्ता बुलावा, और पदाधिकारी टीमों की तैनाती की खबरें आ रही हैं। पार्टी ने बड़े ऐतिहासिक-आयामी जनसमूह का अनुमान जताया है और लाखों की उपस्थिति का लक्ष्य बताया जा रहा है। हालांकि स्वतंत्र तौर पर इस तरह की संख्या की पुष्टि कठिन है। आयोजक-पक्ष ने पार्किंग, सुरक्षा और आयोजित स्थान के आसपास व्यवस्थाओं पर ध्यान देने के निर्देश दिए हैं।
बीएसपी और मायावती ने 1990 और 2000 में उत्तर प्रदेश की राजनीति में महत्वपूर्ण प्रभाव रखा था लेकिन हाल के चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन कमजोर रहा है। इसलिए इस तरह की बड़ी रैली को कई लोग बीएसपी की ‘कमबैक’ रणनीति के रूप में देख रहे हैं संगठनात्मक मजबूती दिखाने और पारंपरिक दलित-पृष्ठभूमि वोट बैंक को वापस जोड़ने के इरादे के साथ।
9 अक्टूबर की यह रैली बीएसपी के लिए भावनात्मक श्रद्धांजलि और राजनीतिक संकेत दोनों का मेल होगी। मायावती के सीधे मंच-संदेश, बड़े पैमाने पर जनसमर्थन का प्रदर्शन और विपक्षी दलों के साथ टकराव इसे 2027 की राजनीति के लिए एक अहम मोड़ बना सकता हैं। स्वतंत्र रूप से उपस्थिति और प्रभाव का आकलन कार्यक्रम के बाद ही साफ होगा, पर फिलहाल यह संकेत है कि बीएसपी इस आयोजन को अपनी राजनीतिक पुनर्स्थापना के लिए एक बड़ा मौका मान रही है।