DELHI : COVID-19 के दौरान तब्लीगी जमात के लोगों को पनाह देने वाले 16 मामलों को High Court ने रद्द किया

दिल्ली हाईकोर्ट ने 17 जुलाई 2025 को COVID‑19 महामारी के दौरान तब्लीगी जमात की विदेशी सहभागियों को आश्रय देने के आरोप वाले 16 मामलों में दाखिल एफआईआर और चार्जशीट्स रद्द कर दीं।

जनवरी, 2022 में दिल्ली पुलिस ने याचिकाओं को रद्द करने का विरोध करते हुए कहा कि भारतीय नागरिकों ने न केवल दिल्ली सरकार द्वारा जारी निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया है, बल्कि कोविड-19 के प्रसार में भी योगदान दिया।

दिल्ली हाई कोर्ट में क्या कुछ हुआ?
लाइव लॉ की रिपोर्ट अनुसार हाईकोर्ट (जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की पीठ) ने 70 भारतीय नागरिकों के खिलाफ दर्ज 16 एफआईआर/चार्जशीट्स रद्द कर दीं। ये लोग मार्च 2020 में दिल्ली स्थित नाज़िमुद्दीन मरकज़ में तब्लीगी जमात के विदेशी सदस्यों को घरों या मस्जिदों में आश्रय देने के आरोपों से जुड़े थे।

अभियुक्तों की तरफ से अदालत में तर्क दिया गया-
अभियुक्तों का प्रतिनिधित्व करने वाली वकील आशिमा मंडला ने तर्क दिया कि शिकायतों में कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं था कि आश्रय देने वालों से COVID‑19 फैलाया गया या उन्होंने किसी सार्वजनिक आदेश का उल्लंघन किया। अभियुक्तों ने केवल लोगों को संकट के समय सुरक्षा प्रदान की थी। वो धार्मिक सभा आयोजित नहीं कर रहे थे।

अभियोजन की दलील:
दिल्ली पुलिस ने वकालत की कि अभियुक्तों ने लॉकडाउन आदेशों का उल्लंघन करते हुए विदेशी उम्मीदवारों को आवास मुहैया कराया और इसके कारण वायरस का प्रसार हुआ।

कोर्ट की तरफ से क्या कहा गया:
जस्टिस कृष्णा ने कहा: “Chargesheets quashed.” यानी चार्जशीट्स रद्द कर दी गईं। विस्तृत आदेश अभी लंबित है। 

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने पुलिस से यह भी पूछा था कि जब शहर में अचानक लॉकडाउन लगा दिया गया तो लोग कहां गए होंगे।

मार्च 2020 की तब्लीगी जमात सभा को COVID‑19 फैलाने वाला “सुपर‑स्प्रेडर” घटना माना गया—जिसमें लगभग 9,000 लोग शामिल हुए और दर्जनों देशों से विदेशी आए थे।
अभी पकड़े गए आवेदनकर्ताओं ने आरोप लगाया कि आरोपों को “विगुरित और अतिरंजित” तरीके से समुदाय विशेष पर रंग चढ़ाने और मीडिया द्वारा “Corona‑Jihad” narrative को आगे बढ़ाने के लिए साजिश के तौर पर पेश किया गया।

 मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाते हुए, अदालत ने स्पष्ट साक्ष्य की कमी के चलते उन्हें राहत दी। 70 भारतीय नागरिकों पर लगे गंभीर आरोप विफल रहे और इन लोगों को अब कानूनी तौर पर की गई जांच से राहत मिल गई है।

विस्तृत आदेश आने के बाद ही स्पष्ट होगा कि अदालत ने किन कानूनी आधारों पर यह निर्णय लिया—क्या सिर्फ साक्ष्य की कमी थी या किसी प्रक्रियागत उल्लंघन के कारण भी यह कदम उठाया गया।

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